चिल्कुर का बालाजी मंदिर तेलंगाना में स्थित है। इस मंदिर को ‘वीसा बालाजी मंदिर’ नाम से भी जाना जाता है। भगवान वेंकटेश्वर का यह मंदिर हैदराबाद से काफी नजदीक है। भगवान बालाजी का यह मंदिर जागृत और काफी पुराना है।

चिल्कुर बालाजी मंदिर इतिहास – Chilkur Balaji Temple History

तेलंगाना का यह सबसे प्राचीन मंदिर है और इस मंदिर को भक्त रामदास के चाचा अक्कान्ना और मदन्ना ने बनवाया था। यहाँ की परंपरा के अनुसार एक भक्त हमेशा तिरुपति बालाजी के दर्शन करने के लिए हरसाल मंदिर में आता था मगर एक साल उसकी तबियत ख़राब होने की वजह से वह आ नहीं सका था।

इसीलिए एक बार भगवान वेंकटेश्वर उसके सपने आये उन्होंने अपने भक्त से कहा की, “मै यहाँ के जंगलो में ही हु। तुम्हे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं”। इस सपने को देखने के बाद भक्त सपने में बताये गए जगह पर जा पंहुचा और वहापर एक पहाड़ी पर छछुंदर ने जहापर छेद किया था वहापर उसने खुदाई की।

कुछ देर बात उसे वहापर भगवान बालाजी की मूर्ति दिखी, मगर उसमे से खून बाहर निकल रहा था और जमीन पर बह रहा था जिसकी वजह से जमीन पूरी तरह से लाल हो गयी थी।

यह सब देखने के बाद वह भक्त अपनी आखो पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था। कुछ देर बात उसका अपने कानोपर से भी विश्वास उड़ गया था क्यों की वहापर उसे आवाज सुनाई दी की “जिस जगह पर छेद हुआ है वहापर दूध डालो”।

ऐसा करने पर वहापर उस भक्त को भगवान बालाजी की मूर्ति के साथ में श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्ति भी मिली। उसके बाद उन मूर्तियो को पूरी विधि के साथ मंदिर में स्थापित किया गया।

चिल्कुर बालाजी मंदिर वास्तुकला – Chilkur Balaji Temple Architecture

इस मंदिर को बनाने की शैली और संरचना को देखकर मालूम पड़ता है की इस मंदिर को सहस्र वर्षो पहले बनवाया गया था।

इस मंदिर को अधिक भव्य बनाने के लिए और इसका महत्व ओर बढ़ाने के लिए, इस मंदिर में 1963 में अम्मवारू की मूर्ति को स्थापित किया गया था क्यों की उसके एक साल पहले भारत पर चीन ने आक्रमण कर दिया था मगर इस मूर्ति की स्थापना करने की बाद में भारत पर आया यह संकट भी टल गया और इसीलिए अम्मवारू की मूर्ति को राज्य लक्ष्मी नाम भी दिया गया।

इस मूर्ति की एक विशेषता यह है इस मूर्ति के तीन हातो में कमल का फुल है और चौथा हात कमल के निचे की जगह को दर्शाने का काम करता है, यह शरणागति का प्रतिक है।

समय समय पर कई सारे महान आचार्य ने इस मंदिर को भेट दी है। श्री अहोबिला मठ के दोनों जीर इस मंदिर में हमेशा आते थे और इसीलिए भी इस मंदिर में एक जीर की मूर्ति भी स्थापित की गयी है। श्री वल्लभाचार्य संप्रदाय के तिलकायाथ इस मंदिर में हमेशा आते है।

श्रीन्गेरी मठ के जगदगुरु शंकराचार्य और उनके शिष्यों ने इस मंदिर में सुधारना लाने के लिए काफी प्रयास किये थे।

इस मंदिर के चारो तरफ़ हरेभरे जंगल होने के कारण यात्री हर साल हजारों की संख्या में आते है और यहापर आने के बाद ध्यान लगाते है। खुद को शांत रखने के लिए, मन को एकांत देने लिए यह जगह सबसे उचित है।

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