द्रौपदी ने उससे प्रश्न किया कि- “धर्मपुत्र ने पहले कौन-सा दाँव हारा है, स्वयं अपना अथवा द्रौपदी का।” दुर्योंधन ने क्रुद्ध होकर दु:शासन से कहा कि वह द्रौपदी को सभाभवन में लेकर आये।
युधिष्ठिर ने गुप्त रूप से एक विश्वस्त सेवक को द्रौपदी के पास भेजा कि यद्यपि वह रजस्वला है तथा एक वस्त्र में है, वह वैसी ही उठ कर चली आये। सभा में पूज्य वर्ग के सामने उसका उस दशा में कलपते हुए पहुँचना दुर्योधन आदि के पापों को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त होगा।
द्रौपदी ने समस्त कुरुवंशियों के शौर्य, धर्म तथा नीति को ललकारा और श्रीकृष्ण को मन-ही-मन स्मरण कर अपनी लज्जा की रक्षा के लिए प्रार्थना की। सब मौन रहे, किंतु दुर्योधन के छोटे भाई विकर्ण ने द्रौपदी का पक्ष लेते हुए कहा कि- “हारा हुआ युधिष्ठिर उसे दाँव पर नहीं रख सकता था।”
किंतु किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। कर्ण के उकसाने से दु:शासन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की चेष्टा की। उधर विलाप करती हुई द्रौपदी ने पांडवों की ओर देखा तो भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- “वह उनके हाथ जला देना चाहता है, जिनसे उन्होंने जुआ खेला था।” अर्जुन ने उसे शांत किया। भीम ने शपथ ली कि वह दु:शासन की छाती का ख़ून पियेगा तथा दुर्योधन की जंघा को अपनी गदा से नष्ट कर डालेगा।
सभा में बार-बार कार्य के अनौचित्य अथवा औचित्य पर विवाद छिड़ जाता था। दुर्योधन ने पांडवों को मौन देखकर ‘द्रौपदी को दाँव में हारे जाने की बात’, उचित है अथवा अनुचित, इसका निर्णय भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव पर छोड़ दिया। अर्जुन तथा भीम ने कहा कि- “जो व्यक्ति स्वयं को दांव में हार चुका है, वह किसी अन्य वस्तु को दाँव पर रख ही नहीं सकता था।”
दूसरे वर से भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव की, शस्त्रों तथा रथ सहित दासभाव से मुक्ति मांगी। तीसरा वर मांगने के लिए वह तैयार ही नहीं हुई, क्योंकि उसके अनुसार क्षत्रिय स्त्रियाँ दो वर मांगने की ही अधिकारिणी होती हैं।
धृतराष्ट्र ने उनसे संपूर्ण विगत को भूलकर अपना स्नेह बनाए रखने के लिए कहा। साथ ही उन्हें खांडव वन में जाकर अपना राज्य भोगने की अनुमति दी। धृतराष्ट्र ने उनके खांडव वन जाने से पूर्व, दुर्योधन की प्रेरणा से, उन्हें एक बार फिर से जुआ खेलने की आज्ञा दी। यह तय हुआ कि एक ही दाँव रखा जायेगा। पांडव अथवा धृतराष्ट्र पुत्रों में से जो भी हार जायेंगे, वे मृगचर्म धारण कर बारह वर्ष वनवास करेंगे और एक वर्ष अज्ञातवास में रहेंगे। उस एक वर्ष में यदि उन्हें पहचान लिया गया तो फिर से बारह वर्ष का वनवास ग्रहण करेंगे।
श्रीधौम्य के नेतृत्व में पांडवों ने द्रौपदी को साथ लेकर वन के लिए प्रस्थान किया। श्रीधौम्य साम मन्त्रों का गान करते हुए आगे की ओर बढ़े। वे कहकर गये थे कि युद्ध में कौरवों के मारे जाने पर उनके पुरोहित भी इसी प्रकार साम गान करेंगे। युधिष्ठिर ने अपना मुंह ढका हुआ था। भीम अपने बाहु की ओर देख रहा था। अर्जुन रेत बिखेरता जा रहा था। सहदेव ने मुंह पर मिट्टी मली हुई थी। नकुल ने बदन पर मिट्टी मल रखी थी। द्रौपदी ने बाल खोले हुए थे, उन्हीं से मुंह ढककर विलाप कर रही थी।