घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास – Grishneshwar Temple History In Hindi
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की स्थापना की वास्तविक तिथि ज्ञात नही हैं, लेकिन इस मंदिर के बारे में कहां जाता हैं कि यह मंदिर 13 वीं शताब्दी से भी पहले निर्मित किया गया था। मुगल साम्राज्य के दौरान यह मंदिर बेलूर क्षेत्र में स्थित था, जिसे वर्तमान में एल्लोरा केव्स के रूप में जाना जाता हैं। मंदिर के आसपास के क्षेत्र में 13 वीं और 14 वीं शताब्दी के बीच कुछ विनाशकारी हिंदू-मुस्लिम संघर्ष देखे गए हैं, जिसमे यह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। 16 वीं शताब्दी के दौरान बेलूर के प्रमुख के रूप में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी भोसले ने इस मंदिर को दोबारा निर्मित करवाया था। हालाकि 16 वीं शताब्दी के बाद मुगल सेना ने घृष्णेश्वर मंदिर पर कई हमले किए। 1680 और 1707 के दौरान हुए मुगल मराठा युद्ध में यह मंदिर फिरसे क्षतिग्रस्त हुआ और अंतिम बार इसका पुनर्निर्माण 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी रानी अहिल्या बाई ने करबाया था।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की संरचना – Grishneshwar Temple Architecture In Hindi
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में पारंपरिक दक्षिण भारतीय वास्तुकला को देखा जा सकता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर में आंतरिक कक्ष और एक गर्भगृह बना हुआ है। यह संरचना लाल रंग के पत्थरों से बनी हुई है और इसका निर्माण 44,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सबसे छोटा ज्योतिर्लिंग मंदिर है। मंदिर परिसर में पांच स्तरीय लंबा शिखर और कई स्तंभ बने हुए हैं, जोकि पौराणिक जटिल नक्काशियों के रूप में निर्मित किए गए हैं। मंदिर परिसर में बनी लाल पत्थर की दीवारें ज्यादातर भगवान शिव और भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाती हैं। गर्भगृह में पूर्व की ओर शिवलिंग है और इसके मार्ग में नंदिस्वर की मूर्ती के दर्शन भी किए जा सकते हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी – Grishneshwar Jyotirlinga Story In Hindi
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी पति पत्नी के जोड़े सुधर्मा और सुदेहा की कहानी से शुरू होती हैं। दोनों अपने विवाहिक जीवन में खुश थे, लेकिन वह संतान सुख की प्राप्ति से वंचित थे और सुदेहा कभी माँ नही बन सकती है यह प्रमाणित हो चुका था। इसलिए सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा के साथ अपने अपने पति सुधर्मा का विवाह करवा दिया। समय व्यतीत होने लगा और घुश्मा के गर्व से एक खूबसूरत बालक ने जन्म लिया। लेकिन धीरे-धीरे अपने हाथ से पति, प्रेम, घर-द्वारा, मान-सम्मान को छिनते हुए देख सुदेहा के मन में ईर्ष्या के बीज अंकुरित होने लगे और एक दिन उसने मौका देखकर बालक की हत्या कर दी और उसके सव को उसी तालाब में डाल दिया जिसमे घुश्मा भगवान शिव के शिवलिंग का विसर्जन करती थी। सुधर्मा की दूसरी पत्नी घुश्मा जोकि भगवान शिव की परम भक्त थी नित्य प्रतिदिन सुबह उठकर भगवान शिव के 101 शिवलिंग बनाकर पूजन करती और फिर एक तालाब में डाल देती थी। बालक की खबर सुनकर चारो ओर हाहाकार मच गया लेकिन घुश्मा प्रतिदिन की तरह उस दिन भी भगवान शिव के शिवलिंग बनाकर शांत मन से पूजन करने में लगी रही और जब वह शिवलिंग को तालाब में विसर्जन करने के लिए गई तो उसका पुत्र तालाब से जीवित बाहर निकल आया। साथ ही साथ भगवान शिव ने भी घुश्मा को दर्शन दिए, भोलेनाथ सुदेहा की इस हरकत से रुस्ट थे उसे दंड और घुश्मा को वरदान देना चाहते थे। लेकिन घुश्मा ने सुदेहा को माफ़ करने के लिए विनती की और जन कल्याण के लिए शंकर भगवान से यही निवास करने की प्रार्थना की। घुश्मा की विनती स्वीकार करके भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में यही निवास करने लगे और यह स्थान घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में दुनिया में प्रसिद्ध हुआ।