अक्षय तृतीया पर व्रत-पूजा और दान का महत्व

अक्षय तृतीया सर्वसिद्ध मुहूर्तों में से एक मुहूर्त है। इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु की आराधना में विलीन होते हैं। स्त्रियाँ अपने और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करके श्री विष्णुजी और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। शांत चित्त से उनकी श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धुप-अगरबत्ती एवं चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि का चढ़ावा करें। इसी दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। साथ ही फल-फूल, बर्तन, वस्त्र, गौ, भूमि, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, खड़ाऊं, चावल, नमक, घी, खरबूजा, चीनी, साग, आदि दान करना पुण्यकारी माना जाता है।

इस दिन छोटे से छोटे दान का भी बहूत महत्व है, फिर भी एक दिलचस्प मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर इलेक्ट्रॉनिक्स सामान देने का भी महत्व है | इस दिन कई लोग पंखे, कूलर आदि का दान करते हैं, दरअसल इसके पीछे यह धारणा है की यह पर्व गर्मी के दिनों में आता है, और इसलिए गर्मी से बचने के उपकरण दान में देने से लोगों का भला होगा और दान देने वालों को पुण्य मिलेगा |

अक्षय तृतीया शुभ कार्यो के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन

यह दिन सभी शुभ कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है, अक्षय तृतीया के दिन विवाह होना अत्यंत ही शुभ माना जाता है. जिस प्रकार इस दिन पर दिये गए दान का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता उसी प्रकार इस दिन होने वाले विवाह में भी पति –पत्नी के बीच प्रेम कभी समाप्त नहीं होता. इस दिन विवाह करने वाले जन्मों जन्मों तक साथ निभाते हैं |

विवाह के अलावा सभी मांगलिक कार्य जैसे, उपनयन संस्कार, घर आदि का उद्घाटन, नया व्यापार डालना, नए प्रोजेक्ट शुरू करना भी शुभ माना जाता है, इस दिन कई लोग सोना तथा गहने खरीदना भी शुभ मानते हैं | इस दिन व्यापार आदि शुरू करने से मनुष्य को हमेशा तरक्की मिलती है तथ उसके भाग्य में दिनों दिन शुभ फल की बढ़ोत्तरी होती है.

अक्षय तृतीया की प्रमुख पौराणिक कथाएं

एक पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के काल में जब पांडव वनवास में थे, तब एक दिन श्रीकृष्ण जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार है, ने उन्हें एक अक्षय पात्र उपहार स्वरुप दिया था। यह ऐसा पात्र था जो कभी भी खाली नहीं होता था और जिसके सहारे पांडवों को कभी भी भोजन की चिंता नहीं हुई और मांग करने पर इस पात्र से असीमित भोजन प्रकट होता था।

श्री कृष्ण से संबंधित एक और कथा अक्षय तृतीया के सन्दर्भ में प्रचलित है, कथानुसार श्रीकृष्ण के बालपन के मित्र सुदामा इसी दिन श्रीकृष्ण के द्वार उनसे अपने परिवार के लिए आर्थिक सहायता मांगने गए थे, भेंट के रूप में सुदामा के पास केवल एक मुट्ठीभर पोहा ही था। श्रीकृष्ण से मिलने के उपरान्त अपना भेंट उन्हें देने में सुदामा को संकोच हो रहा था किन्तु भगवान कृष्ण ने मुट्ठी भर पोहा सुदामा के हाथ से लिया और बड़े ही चाव से खाया।

चूंकि सुदाम श्रीकृष्ण के अतिथि थे, श्रीकृष्ण ने उनका भव्य रूप से आदर-सत्कार किया।ऐसे सत्कार से सुदामा बहुत ही प्रसन्न हुए किन्तु आर्थिक सहायता के लिए श्रीकृष्ण ने कुछ भी कहना उन्होंने उचित नहीं समझा औरवह बिना कुछ बोले अपने घर के लिए निकल पड़े। जब सुदामा अपने घर पहुंचें तो दंग रह गए। उनके टूटे-फूटे झोपड़े के स्थान पर एक भव्यमहल था और उनकी गरीब पत्नी और बच्चें नए वस्त्राभूषण से सुसज्जित थे। सुदामा को यह समझते विलंब ना हुआ कि यह उनके मित्र और विष्णु अवतार श्रीकृष्ण का ही आशीर्वाद है। यहीं कारण है कि अक्षय तृतीया को धन-संपत्ति की लाभ प्राप्ति से भी जोड़ा जाता है।

नौ बातें जो अक्षय तृतीया को बनाते हैं सबसे खास

अक्षय तृतीया को शास्त्रों में बड़ा ही महत्व दिया गया है। आइये जानें वह नौ बातों जो अक्षय तृतीया के दिन हुए जिसने इस दिन को बनाया है बहुत ही शुभ और खास।

  • अक्षय तृतीया को युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसी दिन त्रेतायुग का आरंभ हुआ था।
  • अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया था। नर नारायण ने बद्रीनाथ में तपस्या किया और इसे तीर्थ स्थान बनाया। यही नर नारायण अगले जन्म में अर्जुन और कृष्ण हुए।
  • माना जाता है कि महाभारत के युद्ध का समापन भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ और पाण्डवों को हस्तिनापुर का साम्राज्य प्राप्त हुआ।
  • शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण का युग द्वापर का अंत भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।
  • ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के चरणों से निकली और शिव की जटा में वास करने वाली मां गंगा का धरती पर आगमन भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ।
  • माना जाता है कि माहाभारत महाकाव्य की रचना बद्रीनाथ से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर माना गांव में गणेश गुफा में हुआ था। महर्षि वेद व्यास एवं श्रीगणेश ने अक्षय तृतीया के दिन ही इस महाकाव्य का लेखन कार्य शुरू किया था।
  • चार धामों में प्रमुख बद्रीनाथ की यात्रा का आरंभ अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है। अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलते हैं उसके अगले दिन केदारनाथ और फिर बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं।
  • वृन्दावन के श्री बांके बिहारी जी मंदिर में पूरे वर्ष में केवल एक बार, अक्षय तृतीया के दिन श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं।
  • गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं यह बात कही है। अक्षय तृतीया के दिन ही विष्णु का एक अन्य अवतार हयग्रीव के रूप में हुआ था जिनका सिर अश्व का था।

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