जिज्ञासा

ब्राह्ममुहूर्त में उठना

ब्राह्ममुहूर्त में उठना

        धर्मशास्त्रानुसार ब्राह्ममुहूर्त में उठें । ‘सूर्योदय से पूर्व के एक प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं । उनमें से पहले मुहूर्त को ‘ब्राह्ममुहूर्त’ कहते हैं । उस समय मनुष्य की बुद्धि एवं ग्रंथ रचना की शक्ति उत्तम रहती है; इसलिए इस मुहूर्त को ‘ब्राह्म’ की संज्ञा दी गई है ।

अ. ब्राह्ममुहूर्त का महत्त्व

  • ‘इस काल में दैवी प्रकृति के निराभिमानी जीवों का संचार रहता है ।
  • यह काल सत्त्वगुणप्रधान रहता है । सत्त्वगुण ज्ञान की अभिवृद्धि करता है । इस काल में बुद्धि निर्मल एवं प्रकाशमान रहती है । `धर्म’ एवं `अर्थ’ के विषय में किए जानेवाले कार्य, वेद में बताए गए तत्त्व (वेदतत्त्वार्थ) के चिंतन तथा आत्मचिंतन हेतु ब्र्रह्ममुहूर्त उत्कृष्ट काल है ।
  • इस काल में सत्त्वशुद्धि, कर्मरतता, ज्ञानग्राह्यता, दान, इंद्रियसंयम, तप, सत्य, शांति, भूतदया, निर्लोभता, निंद्यकर्म करने की लज्जा, स्थिरता, तेज एवं शुचिता (शुद्धता), ये गुण अपनाना सुलभ होता है ।’
  • इस काल में मच्छर, खटमल एवं पिस्सू क्षीण होते हैं ।
  • इस काल में अनिष्ट शक्तियों की प्रबलता क्षीण होती है ।

१. नींद से जागने पर सर्वसाधारणत : उबासियां क्यों आती हैं ?

        रात के समय जीव की देह में निर्मित हुई वायु प्रातःकाल जीव के मुख से बाहर निकलती है, इसलिए उबासियां आना : ‘सामान्यतः वायु मुख से बाहर निकलती है, अर्थात मुख वायुतत्त्व बाहर निकलने का द्वार है । जब हम बोलते हैं, तब जीव में सक्रिय सत्त्व-उत्प्रेरक वायु शब्दों के साथ निकलकर शब्द के सूक्ष्म स्वरूप को वायुधारणा की गति प्रदान करती है । (वायुधारणा की गति अर्थात वायुस्वरूप गति, उस प्रकार की गति; धारणा अर्थात क्षमता) रात के समय जीव की देह में निर्मित वायुमुख के माध्यमसे बाहर नहीं निकल पाती । इसलिए इस वायु का जीव की देह में संग्रह होता है । प्रातःकाल यह वायु जीव के मुखसे बाहर निकलती है, इसलिए इस काल में सर्वाधिक उबासियां आती हैं ।

२. नींद से जागने पर किए जानेवाले कृत्य

अ. श्रोत्राचमन

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नींद से जागते ही बिस्तर पर बैठकर श्रोत्राचमन करें ।‘पास में जल न हो, तो भी श्रोत्राचमन अवश्य करें ।’- गुरुचरित्र, अध्याय ३६, पंक्ति १२४

        श्रोत्राचमन, अर्थात दाहिने कान को हाथ लगाकर भगवान श्रीविष्णु के ‘ॐ श्री केशवाय नमः ।’ … ऐसे २४ नामों का उच्चारण करें । आदित्य, वसु, रुद्र, अग्नि, धर्म, वेद, आप, सोम, अनिल आदि सभी देवताओं का वास दाहिने कान में रहता है, इसलिए दाहिने कान को केवल दाहिने हाथ से स्पर्श करने से भी आचमन का फल प्राप्त होता है । आचमन से अंतर्शुद्धि होती है ।

आ. श्लोकपाठ
  • श्री गणेशवंदनावक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।अर्थ : दुर्जनों का विनाश करनेवाले, महाकाय (शक्तिमान), करोडों सूर्यों के तेज से युक्त (अतिशय तेजःपुंज) हे श्री गणेश, मेरे सर्व काम सदैव बिना किसी विघ्नके (निर्विघ्नरूपसे) संपन्न होने दें ।
  • देवता वंदनाब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारिर्भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
    गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।।अर्थ : निर्माता ब्रह्मदेव; पालनकर्ता एवं ‘मुर’ नामक दानव का वध करनेवाले श्रीविष्णु; संहारक एवं ‘त्रिपुर’ राक्षस का वध करनेवाले शिव, ये प्रमुख तीन देवता तथा सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु, ये नवग्रह मेरी प्रभात को शुभ बनाएं ।
  • पुण्य पुरुषों का स्मरणपुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः ।
    पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यश्लोको जनार्दनः ।। – पुण्यजनस्तुति, श्लोक १अर्थ : पुण्यवान नल, युधिष्ठिर, विदेह (जनक राजा) तथा भगवान जनार्दन का मैं स्मरण करता हूं ।
  • सप्त चिरंजीवों का स्मरणअश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च बिभीषणः ।
    कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ।। – पुण्यजनस्तुति, श्लोक २अर्थ : द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा, दानशील बलिराजा, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य एवं पृथ्वी को इक्कीस बार दुर्जन क्षत्रियों से निःशेष करनेवाले परशुराम, ये सात चिरंजीवी हैं । (मैं इनका स्मरण करता हूं ।)
  • पंचमहासतियों का स्मरणअहिल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।
    पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।। – पुण्यजनस्तुति, श्लोक ४अर्थ : गौतमऋषि की पत्नी अहिल्या, पांडवों की पत्नी द्रौपदी, प्रभु रामचंद्र की पत्नी सीता, राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती एवं रावण की पत्नी मंदोदरी, इन पांच महासतियों का जो मनुष्य स्मरण करता है, उसके महापातक नष्ट होते हैं ।

    टिप्पणी – यह श्लोक उच्चारित करते समय कुछ लोग ‘पञ्चकन्या स्मरेन्नित्यम्…’ कहते हैं, जो अनुचित है । ‘पञ्चक’ अर्थात पाच लोगों का समूह तथा ‘ना’ अर्थात मनुष्य; इसलिए ‘पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यम्’ का अर्थ होता है ‘मनुष्य इन पांच स्त्रियों के समूह का स्मरण करे’ ।

  • सात मोक्षपुरियों का स्मरणअयोध्या मथुरा माया काशी कांची ह्यवंतिका ।
    पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ।। – नारदपुराण, पूर्वभाग, पाद १, अध्याय २७, श्लोक ३५अर्थ : अयोध्या, मथुरा, मायावती (हरिद्वार), काशी, कांची, अवन्तिका (उज्जयिनी) तथा द्वारका, मोक्ष प्रदान करनेवाली सात नगरियां हैं । इनका मैं स्मरण करता हूं ।

इ. करदर्शन

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        दोनों हाथों की अंजुलि बनाकर उस पर मन एकाग्र कर निम्नांकित श्लोक उच्चारित करें ।

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।

अर्थ : हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी का, मध्य में सरस्वती एव मूल में गोविंद का वास है; इसलिए प्रातः उठते ही हाथ के दर्शन करे’ ।

        हाथों की अंजुलि से ब्रह्ममुद्रा बनाना, इससे देह की सुषुम्ना नाडी सक्रिय होना तथा रात भर निद्रा के कारण देह में निर्मित हुए तमोगुण के उच्चाटन में यह सहायक होना : ‘हाथों की अंजुलि बनाकर उस पर मन एकाग्र कर ‘कराग्रेवसते लक्ष्मीः …’ यह श्लोक पाठ करने से ब्रह्मांड की देवत्वजन्य तरंगें अंजुलि की ओर आकृष्ट होती हैं । ये तरंगें अंजुलि में ही घनीभूत होती हैं । अंजुलि रूपी रिक्ति में आकाश रूपी व्यापकत्व लेकर वे मंडराती रहती हैं । हाथों की अंजुलि में ब्रह्ममुद्रा निर्मित होती है तथा देह की सुषुम्ना नाडी सक्रिय होती है । यह नाडी जीव की आध्यात्मिक उन्नति के लिए पोषक है । यदि रात भर की तमोगुणी निद्रा के कारण देह में तमोगुण का संवर्धन हुआ हो, तो सुषुम्ना की जागृति उसका उच्चाटन करने में सहायक होती है ।’

ई. भूमिवंदना

        ‘कराग्रे वसते लक्ष्मीः …’ श्लोक पाठ के उपरांत भूमि से प्रार्थना कर, यह श्लोक बोल कर, तदुपरांत भूमि पर पैर रखें ।

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।।

अर्थ : समुद्र रूपी वस्त्र धारण करनेवाली, पर्वत रूपी स्तनवाली एवं भगवान श्रीविष्णु की पत्नी  हे पृथ्वीदेवी, मैं आपको नमस्कार करता हूं । आपको  पैरों का स्पर्श होगा, इसके लिए आप हमें क्षमा करें ।

        रात्रिकाल में तमोगुण प्रबल होता है । ‘भूमि से प्रार्थना कर ‘समुद्रवसनेदेवि…’ श्लोक कहकर भूमि पर पैर रखने से, रात्रिकाल में देह में फैले कष्टदायक स्पंदन भूमि में विसर्जित होने में सहायता मिलती हैं ।’

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